भारतीय सिनेमा की आरंभिक फिल्मों में भारतीय जीवन की संस्कृति की महक रची बसी है। वह भारतीय समाज का आईना रही है जो समाज की हर गतिविधियों को स्वयं में समेट लेने में सक्षम रहा है चाहे वह स्वतंत्रता संग्राम के युद्ध की विभीषिका हो या फिर विभाजन की त्रासदी। शहर की और संवेदनशीलता हो या फिर गांव का मरण फिल्में सब को व्यक्त करने का बूटा रखती हैं ।सिनेमा में जो एक बार कैद हो गया वह दुनिया रहने तक अमर हो गया। सिनेमा अपने समाज का एल्बम होता है जिसमें उसके समय की संवेदना, घटनाएं ,विमर्श आज चित्रों की भांति सुरक्षित होते हैं।
Dr. Rama
प्रो. रमा दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.ए.एम.ए. एम.फिल.पीएच.डी.कोटा यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन.भारतीय जनसंचार संस्थान, दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता में डिप्लोमा। संप्रति- दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में प्राचार्य के रूप में कार्यरत।