सर्व-प्रथम हमें समझने के लिए यह जरूरी है कि पहले हम यह समझे कि क्या प्रेमचंद से पहले जिस तरह के साहित्य की सर्जना हो रही थी वह साहित्य, युगीन रोमांस और अतीत के कीर्तन का पुराण था या किसी और तरह का विकासशील साहित्य। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रेमचंद युगीन साहित्य अपने समय के बाद की चेतना और उसके यथार्थ- बोध की मजबूती से तस्दीक करता है जिसने अतीत के संकीर्ण स्पंदनों को मारकर नई सांसों को एक तरह से सुबह के मौसम में तैरती ऑक्सीजन प्रदान की। शायद प्रेमचंद उसी संक्रमण काल में अपनी चेतना को नई ऊर्जा देते हुए एक नई और बड़ी रचना की परिकल्पना को अपने भीतर पकाने लगे थे जो परंपरागत नैतिकताओं से न केवल प्रभावित थी बल्कि बदलते हुए समय और उसकी सोच से उपेक्षित भी होती जा रही थी, प्रेमचंद ने तय किया कि अपने युग के प्रमाणिक इतिहास की रचना कर वह अपने व्यक्तित्व व सामूहिक जीवन के अनुभव का आकलन कर एक ऐसे उपन्यास की रचना करेंगे जिसमें उपन्यास तारा की रानी चन्द्रावली जैसा पात्र न हो। सेवासदन उपन्यास इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह समाज की संप्रदायिक सोच को बेनक़ाब करता है, हिंदुओं के बीच मुसलमानों में भी दो धड़ों की सियासत इस तरह से प्रचारित की जाती है कि इनमें भी शिया -सुन्नी धड़े है , एक समुदाय उदारवादी और दूसरा कट्टरवाद का समर्थक है। प्रेमचंद ने अपने समय में सेवासदन के पिटारे से जो सियासत के नाग निकाले थे, वे ही कालांतर में देश की सम्प्रदायिक राजनीति के चेहरे बने। इसलिए सेवासदन आज भी प्रासंगिक हैं।
Ranjan Jaidi
रंजन ज़ैदी पिता का नाम- डॉ. ए.ए. ज़ैदी, जन्म - सीतापुर उत्तर प्रदेश, शिक्षा- एम.ए. हिंदी, पी.एच.डी., अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ उत्तर प्रदेश,