नरेंद्र मोहन की डायरियां (कलावधि 1967 से आज तक) एक लंबे अरसे से सर्जकों, आलोचकों, सुधी पाठकों और शोधार्थियों के बीच आत्म परिस्थिति, इतिहास और स्मृति को लेकर व्यापक चर्चा और गहरे विश्लेषण का विषय ही नहीं रही है, कई तरह की विमर्शों को भी उभारती रही है, अलग-अलग समयों पर प्रकाशित उनकी डायरियों में डायरी लेखन के क्षेत्र में नए मॉडल और प्रतिमान स्थापित किए हैं। उनके लिए डायरी सर्जना का नेपथ्य है। इस नेपथ्य के बिना न सर्जक है , न सृजन। इस विचार के आते ही हम इन डायरी रचनाओं को एक जगह, एक क्रम में प्रकाशित करने के लिए तत्पर हो गए। इस तरह एक वृहद योजना की रूपरेखा बनी जिसके अंतर्गत उनकी सभी डायरियों को तीन खंडों में प्रकाशित किया जाए। यहां प्रस्तुत है डायरी समग्र का पहला खंड साथ-साथ मेरा साया । यह खंड नरेंद्र मोहन के लंबे आत्म- संघर्ष और रचना - संघर्ष (1967-2001) का एक ऐसा दस्तावेज है जिसमें उसका समय करवटें लेता महसूस किया जा सकता है। निजी पारिवारिक बातें, सामाजिक - राजनीतिक हालात, उनकी अन्तर्ध्वनियां, साहित्यिक हलचलें और लेखकीय मन की अजीबोगरीब स्थितियां और हरकतें यहां एक- दूसरे से अलग- अलग नहीं है बल्कि परस्पर बिंधी हुई है, आत्मगत साक्ष्य के साथ। खुद को सामने रखते हुए भी आत्मरति और आत्ममुग्धता का शिकार न होने, अपने से अपनी आंखों में खुला छोड़ने को उसकी आंख में उठने-गिरने के प्रसंगों के साथ पकड़ने और उसे अपनी रगों में महसूस करने की कला यहां अनूठी ही है।
Dr. Narendra Mohan
नरेंद्र मोहन : कवि, नाटककार और आलोचक के रूप में सुविख्यात डॉ. नरेंद्र मोहन का जन्म 30 जुलाई 1935, लाहौर में हुआ। वे नए अंदाज में कविता की परिकल्पना करते हैं तथा नयी संवेदना और प्रश्नाकुलता को विकसित करने में उनकी ख़ास भूमिका रही है। नरेंद्र मोहन ने अपनी आलोचना पुस्तकों और संपादन कार्यों से जो विमर्श खड़े किए हैं,उनके द्वारा सृजन और चिंतन के नए आधारों की खोज संभव हुई है। विभाजन: भारतीय भाषाओं की कहानियां, दो खंड, मंटो की कहानियां और मंटो के नाटक उनकी संपादन प्रतिभा के परिचायक हैं। 12 खंडों में नरेंद्र मोहन रचनावली प्रकाशित हो चुकी है। उनके नाटक, आत्म कथाएं, जीवनी और कविताएं विभिन्न भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में अनूदित हो चुकी है। कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित साहित्यकार है ।