क्यों कबीरदास स्त्री को माया और नरक का कुंड कहते हैं, जबकि वही कबीर साधना की प्रकाष्ठावस्था में स्वयं स्त्री बन जाते हैं अपने को राम की बहुरिया कहते हैं और सामान्य प्रेमी- प्रेमिका की भांति विरह और मिलन के आध्यात्मिक अनुभव के क्षणों का एहसास कराते हैं वे बालम आव हमारे गेह और तुम बिन दुखिया देह रे जैसी पंक्तियों के माध्यम से मानवीय संबंधों की ऊष्मा का एहसास कराते हैं वे मां के जैसा सुंदर चित्र खींचते हैं क्या किसी सगुण भक्त कवि के यहां पाया जा सकता है युगीन परिस्थितियों और मध्यकालीन सामंती समाज के परिपेक्ष में जब हम कबीर की स्त्री- दृष्टि पर विचार करते हैं तो हम यह पाते हैं कि वे समग्रता स्त्री विरोधी नहीं बल्कि स्त्री के हक़ में खड़े होते दिखते हैं।
prof. Anil Ray
अनिल राय, जन्म: 1963, उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में प्रारंभिक शिक्षा गांव में हुई दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए, एम.फिल. पी.एच.डी. ढाई वर्ष तक दक्षिण एशिया अध्ययन विभाग, पीकिंग विश्वविद्यालय, बीजिंग( चीन) में विजिटिंग प्रोफेसर रहें दिल्ली विश्वविद्यालय के कमला नेहरू कॉलेज और शहीद सुखदेव कॉलेज आफ बिजनेस स्टडीज की गवर्निंग बॉडी के चेयरमैन रहे इस समय हंसराज कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय की गवर्निंग बॉडी के सदस्य हैं। भारत के कई केंद्रीय एवं राज्य विश्वविद्यालयों के अध्ययन मंडल (बोर्ड ऑफ स्टडीज ) के सदस्य हैं । निर्गुण काव्य में नारी, आदिकालीन हिंदी साहित्य अध्ययन की दिशाएं, निबंधों की दुनिया :शिवपूजन सहाय, चीनी लोक कथाएं, माओं के देश में, इत्यादि पुस्तकों के साथ ही विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में शोध, लेख, समीक्षाएं, कहानियां, और कविताएं प्रकाशित, सम्प्रति- हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर