आचार्य शिवपूजन सहाय (संघर्ष और सृजन): Acharya Shiv Pujan Sahay (Struggle and Creation)
Description
प्रकाशकीय आचार्य शिवपूजन सहाय का साहित्य-संसार राष्ट्रीय चेतना, जीवन के उच्च विचारों, तीक्ष्ण व्यंग्य दृष्टि एवं सहज मानवीय संवेदना से संपृक्त है। वे सच्चे अर्थों में जनता के लेखक थे। आमजन की सुख-दुखात्मक अनुभूतियों से उनका साहित्य परिपूर्ण है। उन्होंने अपनी रचना में लोकरुचि को अभिव्यंजित किया है और इसके लिए भाषा पर जो अधिकार चाहिए उसमें शिव जी को महारत हासिल था। आज जो हिंदी का वैश्विक स्वरूप है वह आचार्य शिवपूजन सहाय जैसे एकांत साधक के सत् प्रयासों का ही प्रतिफल है। हिंदी की गौरवपूर्ण छवि को सँवारने, निखारने में जिन हिंदी सेवाओं का योगदान है, उनमें शिव जी का नाम सम्मान पूर्वक लिया जाता है।
प्रस्तुत पुस्तक सुधि आलोचक एवं वरिष्ठ प्रो. कालानाथ मिश्र के संपादन में आचार्य शिवपूजन सहाय जी के जीवन और संघर्ष के विविध आयामों पर गंभीरता से विवेचन करता है। डॉ. मिश्र विविध आयामी सृजनधर्मी व्यक्तित्व के धनी हैं। पुस्तक में संकलित सभी विद्वानों के लेख रुचिकर एवं पठनीय है क्योंकि उनमें संकलित विचारों के साथ-साथ यह शिवपूजन सहाय के जीवन यात्रा के कई परतों को खोलता है।”
About The Author
“पुस्तक से
‘एक ओर ‘देहाती दुनिया’ जैसे उपन्यास का प्रणयण कर आचार्य जी ने हिंदी में आँचलिक कथा साहित्य की नींव रखी, वहीं दूसरी ओर उन्होंने ‘मुंडमाल’ जैसी कहानी लिखकर भारतीय समाज के जातीय गौरव को वैश्विक स्वरूप दिया।
‘आचार्य शिवपूजन सहाय जी का संपूर्ण साहित्य भाषा की अनुपम अभिव्यंजना से अलंकृत है। यह व्यंजित करता है कि भाषा में भावों की अभिव्यक्ति किस कुशलता से की जा सकती है।
उन्हें देखकर ऐसा लगा कि उनके तन और दृष्टि में गाँव की छवि मूर्त है।
‘उनकी सादगी ने बहुत प्रभावित किया । मालूम पड़ा कि यही शिवपूजन सहाय जी हैं।
उन्होंने कहा कि रात भर सोया नहीं हूँ क्योंकि अपना भाषण रास्ते में ही लिखता रहा। जाहिर है उनके भाषण के भाव और भाषा ने उपस्थित जनों को अत्यंत प्रभावित किया।
-डॉ. राम दरश मिश्र’
“”भारत के भाग्याकाश में काले काले बादल गरज रहे हैं। अश्रु धाराएँ बरस रही हैं। आज्ञान का अंधकार छा रहा है। भाव और
भाषा रूपी वसुदेव- देवकी हृदय कारागार में वंद हैं। जिह्वा- द्वार पर कानून का संत्री खड़ा
है। पराधीनता बोध की कितनी गहरी पीड़ा से निकली है यह पैंक्तियां मर्म भेदी आवेग मयी ‘भाषा में कितनी गहरी संवेदना है।”””
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