नन्द किशोर पाण्डेय (जीवन और सृजन): Nand Kishore Pandey (Life and Creation)
Description
“पाण्डेय जी का व्यक्तित्व सुदर्शन है। एक कुशल वक्ता के रूप में उन्हें सुनते हुए लगता है कि हम कितनी वातों से अपरिचित हैं। उनकी वाणी में सरस्वती बैठी हुई और लेखनी में वृहस्पति । उनके ज्ञान में रूढ़ियाँ नहीं हैं बल्कि आधुनिक विचारों का समन्वय है। उनके ज्ञान की दुनिया विशाल ही नहीं बहुआयामी भी है। जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि संत काव्य उनके आलोचना का केंद्रबिंदु है। संत-साहित्य के सन्दर्भ में उनकी आलोचना कुछ नए प्रतिमानों को भी स्थापित करती है। भक्तिकाल के मुस्लिम कवियों की भारतीयता बोध पर उनके विचार स्पष्ट हैं और निर्णायक भी। मुझे लगता है कि संत कवियों के सामाजिक और सांस्कृतिक योगदान को समझने के लिए पाण्डेय जी जी की आलोचना से गुजरना आवश्यक है।
पूर्वोत्तर में एक लम्बा समय पाण्डेय जी दिया है। वहां पर भारतीय भाषा और साहित्य के साथ संस्कृति को भी स्थापित किया। अरुणाचल प्रदेश उनकी कर्मभूमि है। जहाँ से उन्होंने अपने अकादमिक दुनियाँ को नया आयाम दिया। है। व्यक्तिगत फायदे के लिए लोग सत्ता के साथ समन्वय करते हैं। उसका लाभ लेते हैं लेकिन पाण्डेय जी ने अपनी राष्ट्रवादी सोच से कभी समझौता नहीं किया। उनके लेखन, विचार, काम करने के तरीके और आचार-व्यवहार में एक ऐसे व्यक्तित्व की छवि दिखाई देगी जिसके अन्दर अपनी संस्कृति और राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव दिखेगा। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के बाद राष्ट्रवादी आलोचना की जो धारा अवरुद्ध हो गई थी उसे फिर से पाण्डेय जी ने ही चलायमान किया।
-भूमिका से”
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